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Karnataka 2nd PUC Hindi Previous Year Question Paper June 2019

समय : 3 घंटे 15 मिनट
कुल अंक : 100

I. अ) एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए : (6 × 1 = 6)

प्रश्न 1.
कर्त्तव्य किस पर निर्भर है?
उत्तर:
कर्तव्य करना न्याय पर निर्भर है।

प्रश्न 2.
किसका व्यापारीकरण हो रहा है?
उत्तर:
धर्म का व्यापारीकरण हो रहा है।

प्रश्न 3.
विश्वेश्वरय्या का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
विश्वेश्वरय्या का पूरा नाम मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या था।

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प्रश्न 4.
चीफ साहब बड़ी रुचि से किसे देखने लगे?
उत्तर:
चीफ़ साहब बड़ी रुचि से फुलकारी को देखने लगे।

प्रश्न 5.
स्वर्ग या नरक में निवास स्थान ‘अलॉट’ करनेवाले कौन है?
उत्तर:
स्वर्ग या नरक में निवास स्थान ‘अलॉट’ करनेवाले धर्मराज हैं।

प्रश्न 6.
‘नारा’ का प्रसिद्ध मन्दिर कौनसा है?
उत्तर:
‘नारा’ का प्रसिद्ध मंदिर है- तोदायजी।

आ) निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर लिखिए: (3 × 3 = 9)

प्रश्न 7.
सुजान भगत को सबसे अधिक क्रोध बुलाकी पर क्यों आता है?
उत्तर:
सुजान को सबसे अधिक क्रोध बुलाकी पर था। क्योंकि अपने बेटों को वह कुछ भी कहती नहीं, वह भी उन्हीं का साथ देती। रात-दिन मेहनत करके पसीना बहाया, गर्मी-सर्दी सब-कुछ सहा, पर आज भीख तक देने का अधिकार उसे नहीं। बुलाकी ने उसकी अभी तक कमाई खाई थीं, पर आज उसका ही विरोध कर रही है। अब बुलाकी के बेटे प्यारे हैं और वह निखटू है। आज बुलाकी के बेटे हैं और वह उसकी माँ है। सुजन तो बाहर का आदमी है।

प्रश्न 8.
गंगा मैया का कुर्सी से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गंगा मैया समाज में व्याप्त समस्याओं के बारे में कहती हैं – महँगाई, रिश्वतखोरी और पाशविकता बढ़ती चली जा रही है। धर्म का व्यापारीकरण हो रहा है। राजनीति के बारे में तो कहना ही क्या – सब कुर्सी के लिए झगड़ रहे हैं। कुर्सी का अर्थ है – शक्ति। शक्ति का अर्थ है – वैभव, धन, सम्मान, कीर्ति आदि। एक बार इसका चस्का जबान पे चढ़ जाय तो फिर कुछ अच्छा नहीं लगता। ये छिन जाए तो व्यक्ति ऐसा भटकता है जैसे मजनू लैला के पीछे पीछे घूमता था।

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प्रश्न 9.
मन्नू भंडारी की माँ का परिचय दीजिए।
उत्तर:
मन्नू भंडारी की माँ उनके पिता के ठीक विपरीत थीं। वे पढ़ी-लिखी नहीं थीं। उनमें धरती से कुछ ज्यादा ही धैर्य और सहनशक्ति थी। वे पिताजी की हर ज्यादती को अपना प्राप्य और बच्चों की हर उचित-अनुचित फरमाइश और जिद को अपना फर्ज समझकर बड़े सहज भाव से स्वीकार करती थीं। उन्होंने जिंदगी भर अपने लिए कुछ माँगा नहीं, चाहा नहीं…. केवल दिया ही दिया।

प्रश्न 10.
विश्वेश्वरय्या के गुण-स्वभाव का परिचय दीजिए।
उत्तर:
सर एम. विश्वेश्वरय्या एक कर्मयोगी थे। वे समय के पाबन्द थे। वे समय के सदुपयोग के बारे में अच्छी तरह जानते थे। समय पर अपने सभी काम करते थे। उन्होंने जीवन पर्यंत विश्राम नहीं लिया। वे सदा मेहनत करते थे, दूसरों से भी यही आशा रखते थे। वे सेवाभाव को अत्यंत पवित्र आचरण मानते थे। जिन्दगी भर देश की तथा मानव-समाज की सेवा में लगे रहे। उनका चरित्र आदर्शपूर्ण था। वे विनयशील तथा साधु प्रकृति के थे। ईमानदारी तो उनके चरित्र की अटूट अंग ही थी। असाधारण प्रतिभा रखते हुए भी उन्होंने कभी गर्व का अनुभव नहीं किया। अपने श्रम और स्वावलम्बन द्वारा कोई भी शिखर तक पहुंच सकता है, इसके जबर्दस्त प्रमाण है – विश्वेश्वरय्या।

प्रश्न 11.
जापान के ‘हिरन-वन’ के बारे में लिखिए।
उत्तर:
तोदायजी से जुड़ा एक हिरन-वन है। मंदिर से हिरन-वन का रास्ता रंगबिरंगी बत्तियों से बिछा हुआ है। पथ लम्बा है पर खूबसूरत है। यहाँ के हिरन भारतीय हिरनों से भी अधिक हृष्ट-पुष्ट हैं। आटे के बने बिस्किट मिलते हैं जो लोग खरीद कर हिरनों को खिलाते रहते हैं। यात्रियों को देखकर हिरन दौड़ आते हैं और लपक कर बिस्किट खा जाते हैं। यहाँ से नारा शहर का विहंगम दृश्य दिखाई देता है।

अ) निम्नलिखित वाक्य किसने किससे कहे? (4 × 1 = 4)

प्रश्न 12.
“धरम के काम में मीन-मेष निकालना अच्छा नहीं।”
उत्तर:
यह वाक्य सुजान ने अपनी पत्नी बुलाकी से कहा।

प्रश्न 13.
“बंद करो अब, इस मन्नू का घर से बाहर निकलना।”
उत्तर:
यह वाक्य मन्नू भंडारी के पिताजी ने अपनी पत्नी से कहा।

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प्रश्न 14.
“सच? मुझे गाँव के लोग बहुत पसंद है।”
उत्तर:
यह वाक्य चीफ़ साहब ने शामनाथ से कहा।

प्रश्न 15.
“गरीबी की बीमारी थी।”
उत्तर:
यह वाक्य भोलाराम की पत्नी ने नारद से कहा।

आ) निम्नलिखित में से किन्हीं दो का ससंदर्भ स्पष्टीकरण कीजिए: (2 × 3 = 6)

प्रश्न 16.
“जिधर देखो उधर कर्त्तव्य ही कर्त्तव्य देख पड़ते हैं।”
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘कर्त्तव्य और सत्यता’ नामक पाठ से लिया गया है जिसके लेखक डॉ. श्यामसुन्दर दास हैं।

संदर्भ : लेखक ने कर्त्तव्य के महत्व के बारे में बताते हुए इसे कहा है।

स्पष्टीकरण : लेखक कहते हैं कि कर्त्तव्य करना हम लोगों का परम धर्म है और जिसके न करने से हम लोग औरों की दृष्टि में गिर जाते हैं। कर्त्तव्य करने का आरम्भ पहले घर से ही होता है, क्योंकि यहाँ बच्चों का कर्त्तव्य माता-पिता की ओर और माता-पिता का कर्त्तव्य लड़कों की ओर दिखाई पड़ता है। इसके अतिरिक्त पति-पत्नी, स्वामी-सेवक और स्त्री-पुरुष के परस्पर अनेक कर्तव्य हैं। घर के बाहर हम मित्रों, पड़ोसियों और प्रजाओं के परस्पर कर्तव्यों को देखते हैं। इस तरह समाज में जिधर देखों उधर कर्त्तव्य ही कर्त्तव्य दिखाई देते हैं।

प्रश्न 17.
“एक ओर वे बेहद कोमल और संवेदनशील व्यक्ति थे तो दूसरी ओर बेहद क्रोधी और अहंवादी।”
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘एक कहानी यह भी’ नामक पाठ से लिया गया है जिसकी लेखिका मन्नू भण्डारी हैं।

संदर्भ : प्रस्तुत वाक्य में लेखिका स्वयं अपने पिता के स्वभाव का परिचय देते हुए इसे कहती हैं।

स्पष्टीकरण : मन्नू भण्डारी के पिताजी एक सुशिक्षित संवेदनशील व्यक्ति थे। जब वे इन्दौर में थे, तब उनकी बड़ी प्रतिष्ठा थी, सम्मान था, नाम था। राजनीति के साथ-साथ समाज-सुधार के कामों से भी जुड़े हुए थे। लेकिन एक बड़े आर्थिक झटके के कारण, अपनों के हाथों विश्वासघात किए जाने के कारण वे इंदौर से अजमेर आ गए। गिरती आर्थिक स्थिति, नवाबी आदतें, अधूरी महत्वाकाँक्षाएँ आदि के कारण वे बेहद क्रोधी और शक्की मिजाज के बन गए।

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प्रश्न 18.
“मेरी माँ गाँव की रहनेवाली हैं। उमर-भर गाँव में रही हैं।”
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘चीफ़ की दावत’ नामक पाठ से लिया गया है जिसके लेखक डॉ. भीष्म साहनी हैं।

संदर्भ : अपने साहब से शामनाथ अंग्रेजी में बोले – मेरी माँ गाँव की रहने वाली हैं। उमर भर गाँव में रही है इसलिए लजाती है।

स्पष्टीकरण : मिस्टर शामनाथ के घर पर शाम को चीफ़ की दावत थी। सुबह से शामनाथ और उनकी पत्नी ने खूब तैयारियाँ कीं। चीफ़ साहब एक अंग्रेज थे। शामनाथ की एक ही चिन्ता थी – माँ अंग्रेजी रीति-रिवाज नहीं जानती थीं, अनपढ़ थीं। यदि चीफ़ साहब की भेंट माँ से हुई तो क्या किया जाए? फिर भी माँ को अच्छे कपड़े पहनाकर उन्हें कुछ हिदायतें देकर उसके कमरे के बाहर कुर्सी पर बिठाते हैं। लेकिन जो डर था वही हुआ। ड्रिंक पार्टी समाप्त कर जैसे ही वे खाने के लिए बरामदे में पहुंच रहे थे, माँ कुर्सी पर सोकर जोर से खरटि ले रही थीं। माँ को देखते ही देसी अफसरों की स्त्रियाँ हँस पड़ी। माँ हड़बड़ाकर उठ बैठीं। चीफ़ साहब ने उन्हें नमस्ते किया। तब शामनाथ अपनी माँ का परिचय देते हुए यह वाक्य चीफ से कहते हैं।

प्रश्न 19.
“साधु-संतों की वीणा से तो और अच्छे स्वर निकलते हैं।”
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘भोलाराम का जीव’ नामक पाठ से लिया गया है जिसके लेखक हरिशंकर परसाई हैं।

संदर्भ : सरकारी दफ्तर के बड़े साहब ने इस वाक्य को समझाते हुए नारद जी से कहा।

स्पष्टीकरण : नारद जी भोलाराम के जीव को ढूँढते हुए पृथ्वी पर आए। भोलाराम की पत्नी से सारी कथा सुनकर उसकी रूकी हुई पेंशन दिलाने का प्रयत्न करने का आश्वासन देते हुए सरकारी दफ़्तर में पहुँचे। एक बाबू साहब से पता चला कि भोलाराम ने दरख्वास्तें तो भेजी थीं, पर उन पर वज़न नहीं रखा था, इसलिए कहीं उड़ गयी होंगी। आखिर बड़े साहब से भी यही उत्तर मिलता है तो नारद वजन का अर्थ समझ नहीं पाये। बड़े साहब नारद जी को समझाते हुए कहते हैं कि जैसे आपकी यह सुंदर वीणा है, इसका भी वज़न भोलाराम की दरख्वास्त पर रखा जा सकता है। मेरी लड़की गाना-बजाना सीख रही है। यह मैं उसे दे दूँगा। साधु-संतों की वीणा से तो और अच्छे स्वर निकलते हैं। तब कहीं नारद समझ पाये।

III. अ) एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए : (6 × 1 = 6)

प्रश्न 20.
श्रीकृष्ण के अनुसार किसने सब माखन खा लिया?
उत्तर:
श्रीकृष्ण के अनुया’ नाम सखा ने सब माखन खा लिया हैं।

प्रश्न 21.
चिता किसे जलाती है?
उत्तर:
चिता निर्जीव शरीर को जलाती है।

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प्रश्न 22.
कवि नरेन्द्र शर्मा क्या न बनने का संदेश देते हैं?
उत्तर:
कवि नरेन्द्र शर्मा कायर न बनने का सन्देश देते हैं।

प्रश्न 23.
हवा को क्या हो जाने से बचाना है?
उत्तर:
हवा को धुआँ हो जाने से बचाना है।

प्रश्न 24.
राणा की हुंकार कहाँ सुनी जा सकती है?
उत्तर:
राणा की हुंकार राजस्थान में सुनी जा सकती है।

प्रश्न 25.
दीवार किसकी तरह हिलने लगी?
उत्तर:
दीवार परदों की तरह हिलने लगी।

आ) निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्ही दो प्रश्नों के उत्तर लिखिए: (2 × 3 = 6)

प्रश्न 26.
गोपिकाएँ अपने आपको क्यों भाग्यशालिनी समझती हैं?
उत्तर:
गोपिकाएँ अपने आपको भाग्यशालिनी समझती हैं क्योंकि जिन आँखों से उद्धव ने श्रीकृष्ण को देखा था, वे आँखें अब उन्हें मिल गई हैं अर्थात् गोपिकाएँ उद्धव के आँखों में श्याम की आँखें, श्याम की मूरत देख रहे हैं। जैसे भौरें के प्रिय सुमन की सुगंध को हवा ले आती है वैसे ही उद्धव को देखकर उन्हें अत्यधिक आनन्द हो रहा है तथा उनके अंग-अंग सुख में रंग गया है। जैसे दर्पण में अपना रूप देखने से दृष्टि अति रुचिकर लगने लगती है, उसी प्रकार उद्धव के नेत्र रूपी दर्पण में कृष्ण के नेत्रों के दर्शन कर गोपिकाओं को बहुत अच्छा लग रहा है और अपने आपको भाग्यशालीनी समझती हैं।

प्रश्न 27.
बेटी रंगीन कपड़े और गहने क्यों नहीं चाहती है?
उत्तर:
बेटी रंगीन कपड़ों को ठुकराते हुए अपनी माँ से कहती है कि वे कपड़े उसे मिट्टी में खेलने नहीं देते। वे खेलने के आनंद से वंचित रह जाती है। ये कपड़े दूसरों के लिए भले ही सुंदर दिखाई दें पर मेरे लिए नहीं। सोने के गहने मुझे तकलीफ़ देते हैं। इस तरह ये मुझे बंधन के समान लगते हैं।

प्रश्न 28.
पर्यावरण के संरक्षण के सम्बन्ध में कवि कुँवर नारायण के विचार लिखिए।
उत्तर:
कवि कुँवर नारायण जी अबकी बार घर लौटे तो देखा कि वह बूढ़ा चौकीदार वृक्ष घर के दरवाजे पर नहीं है। वे बहुत उदास हो जाते हैं, उसकी यादों में खो जाते हैं। उसका शरीर पुराने चमड़े का बना था। वह बहुत ही मजबूत था। झुर्रियोंदार खुरदरा उसका तन मैला कुचैला था। उसकी एक सूखी डाली राइफिल सी थीं। फूल-पत्तीदार पगड़ी धारण किया वह वृक्ष बहुत ही सालों से स्थिर मजबूत ढंग से खड़ा था। धूप में, बारिश में, गर्मी में, सर्दी में अर्थात् सभी मौसमों में हमेशा चौकन्ना होकर घर की रखवाली करता था। कवि और उसके बीच एक प्रकार से दोस्ती हो गयी थी। उसकी ठंडी छाया में कुछ पल बैठकर ही कवि घर के अंदर प्रवेश करते थे।

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प्रश्न 29.
दक्षिण प्रदेश की महत्ता को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘मानव’ जी ने ‘भारत की धरती’ कविता में भारत के विभिन्न प्रांतों का वर्णन किया है। दक्षिण के प्रदेशों को उन्होंने रत्नों की खान कहा है। तमिलनाडु में कम्ब ने रामायण का ज्ञान दिया। केरल और आंध्रप्रदेश सभ्यता, संस्कृति और धर्म के विधायक हैं। महाराष्ट्र में वीर शिवाजी का गुणगान होता है। कर्नाटक में कावेरी नदी बहती है। यहीं पर टीपू और रानी चेन्नम्मा के बलिदानों की कहानियाँ मिलती हैं तो दूसरी ओर बसवेश्वर, अक्कमहादेवी, रामानुज जैसे संतों ने अपने ज्ञान से संसार को प्रकाशित किया। इस प्रकार दक्षिण प्रदेश धर्म-कर्म, साहित्य-कला, संस्कृति आदि का पालन करनेवाला प्रदेश है।

इ) ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए: (2 × 4 = 8)

प्रश्न 30.
i) प्रभुजी तुम दीपक, हम बाती,
जाकी जोति बरै दिन राती।
अथवा
ii) अति अगाधु, अति औथरौ, नदी, कूप, सरु, बाइ।
सो ताकौ सागरु जहाँ, जाकी प्यास बुझाइ॥
उत्तर:
i) प्रसंग : प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के रैदासबानी’ से लिया गया है जिसके कवि संत रैदास हैं।

संदर्भ : इसमें रैदास जी भक्त और भगवान के बीच के संबंध का वर्णन करते हैं।

भाव स्पष्टीकरण : भगवान और भक्त के बीच के संबंध को स्पष्ट करते हुए रैदास जी कहते हैं कि भगवान के बिना भक्त का कोई अस्तित्व नहीं है। प्रभु जी यदि दीप हैं तो भक्त वर्तिका के समान है। दोनों मिलकर प्रकाश फैलाते हैं। प्रभु जी यदि मोती हैं तो भक्त धागा है, दोनों मिलकर सुंदर हार बन जाते हैं। दोनों का मिलन सोने पे सुहागे के समान है। दास्य भक्ति, शरणागत तत्व भी इसमें दर्शाया गया है। वे (रैदास) प्रभुजी को स्वामी मानते हैं और अपने को उनका दास या सेवक मानते हैं।

विशेष : दास्य भक्ति की पराकाष्ठा इसमें है।

अथवा

ii) प्रसंग : प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘बिहारी के दोहे’ से लिया गया है, जिसके रचयिता बिहारी लाल जी हैं।

संदर्भ : कवि बिहारी इस दोहे के माध्यम से कहते है कि जिसका जिसमें अभीष्ट सध जाये, वही उसके निमित्त सब कुछ है, चाहे वह बड़ा हो या छोटा।

भाव स्पष्टीकरण : इस दुनिया में अति गहरे और अति उथले पानी के स्रोत हैं। जैसे- सागर, नदी, कूप, सरोवर और कुँआ। बिहारी लाल कहते हैं कि जहाँ जिसकी प्यास बुझ जाए वही उसके लिए सागर के समान है। भाव यह है कि संसार में छोटे-बड़े कई दानी हैं। जिसकी इच्छा जहाँ पूर्ण हो जाए, उस के लिए वही बड़ा दानी है।

प्रश्न 31.
i) युद्धं देहि कहे जब पामर,
दे न दुहाई पीठ फेर कर;
या तो जीत प्रीति के बल पर
या तेरा पद चूमे तस्कर।
अथवा
ii) वे मुस्काते फूल, नहीं
जिनको आता है मुरझाना,
वे तारों के दीप, नहीं
जिनको भाता है बुझ जाना।
उत्तर:
i) प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘कायर मत बन’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है, जिसके रचयिता नरेन्द्र शर्मा हैं।
संदर्भ : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने मनुष्य को कायर न बनने का संदेश देते हुए कहा है कि मनुष्य को मनुष्यता का ध्यान भी रखना अवश्यक है।

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स्पष्टीकरण : कवि कह रहे हैं- हे मनुष्य! तुम कुछ भी बनो बस कायर मत बनो। अगर कोई दुष्ट या क्रूर व्यक्ति तुमसे टक्कर लेने खड़ा हो जाए, तो उसकी ताकत से डरकर तू पीछे मत हटना। पीठ दिखाकर भाग न जाना। संसार में कई ऐसे महापुरुष जन्मे हैं, जिन्होंने प्यार और सेवाभाव से दुष्टों के दिल को भी जीत लिया या पिघलाया है। क्योंकि हिंसा का जवाब प्रतिहिंसा से देना नहीं। प्रतिहिंसा भी दुर्बलता ही है, लेकिन कायरता तो उससे भी अधिक अपवित्र है। इसलिए हे मानव! तुम कुछ भी बनो लेकिन कायर मत बनो।

अथवा

ii) प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘अधिकार’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है, जिसकी रचयिता महादेवी वर्मा हैं।

संदर्भ : महादेवी जी के इस सरस गीत में वेदना की मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है। वे अपने अज्ञात प्रियतम की विरह की पीड़ा पर अपना अधिकार बनाये रखना चाहती है। वे सर्वसुख सम्पन्न लोक की कामना नहीं करतीं। वे सांसारिक जीवन में ही रहने की कामना करती हैं।

व्याख्या : महादेवी वर्मा अपने प्रियतम (परमात्मा) को संबोधित करती हुई कहती हैं कि मैंने सुना है कि तुम्हारे लोक (स्वर्ग) में फूल सदैव खिले रहते हैं उन्होंने कभी मुरझाना नहीं सीखा है, किन्तु मैं तो वे फूल चाहती हूँ जिन्होंने मुरझाना भी सीखा है। पीडा का अपना आनंद है। आपके स्वर्ग लोक में तारों के दीपक हैं जिनको बुझ जाना कभी अच्छा नहीं लगता है, अर्थात् वे सदैव जलते रहते हैं। यादि तुम मुझे अपना लोक प्रदान करो तो मुझे ये दीपक नहीं चाहिए। मुझे तो संघर्षशील मिट्टी के दीपक अच्छे लगते है जो दुःख और सुख से युक्त इस संसार को प्रकाशित करते हैं। मुझे तो दुःखों का साथ ही अच्छा लगता है।

विशेष : मानव जीवन में उत्पन्न वेदना की अनुभूति को प्रतिपादित किया है।

भाषा – शुद्ध हिन्दी खड़ी बोली है।

शैली – भावात्मक गीति शैली है।

रस-छन्द – मुक्तक छंद, गुण-माधुर्य, संपूर्ण पद में पद मैत्री है।

IV. अ) एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए : (5 × 1 = 5)

प्रश्न 32.
नौकरों से काम लेने के लिए क्या होनी चाहिए?
उत्तर:
नौकरों से काम लेने की तमीज (या ढंग) होनी चाहिए।

प्रश्न 33.
छोटी बहू के मन में किसकी मात्रा ज़रूरत से ज्यादा है?
उत्तर:
छोटी बहू के मन में दर्प की मात्रा जरूरत से कुछ ज्यादा है।

प्रश्न 34.
भारवि से मिलने आयी स्त्री का नाम लिखिए।
उत्तर:
भारवि से मिलने आई स्त्री का नाम भारती है।

प्रश्न 35.
वसंत ऋतु में किसके स्वर से सभी परिचित हैं?
उत्तर:
वसंत ऋतु में कोकिल के स्वर से सभी परिचित हैं।

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प्रश्न 36.
कवि किस पर शासन करता है?
उत्तर:
कवि समय पर शासन करता है।

आ) निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लिखिएः (2 × 5 = 10)

प्रश्न 37.
i) दादा जी का चरित्र-चित्रण कीजिए।
अथवा
ii) बेला की चारित्रिक विशेषताओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर:
i) दादाजी परिवार के मुखिया हैं। वे संयुक्त परिवार के पक्षधर हैं। घर का प्रत्येक व्यक्ति उनका आदर करता है। दादाजी की खूबी यह है कि घर के प्रत्येक सदस्य की समस्य का समाधान बड़ी ही चतुराई से करते हैं। परिवार को वे एक वट-वृक्ष मानते हैं और घर के सदस्यों को उस वट-वृक्ष की डालियाँ। इसलिए वे एक भी डाली को टूटने नहीं देना चाहते। यहाँ तक कि उन्होंने कहा — मैं इससे सिहर जाता हूँ। घर में मेरी बात नहीं मानी गई, तो मेरा इस घर से नाता टूट जायेगा। इससे निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि दादाजी का चरित्र श्रेष्ठ, धवल एवं सिद्धांतों से जुड़ा हुआ है।

अथवा

ii) बेला एक प्रतिष्ठित तथा संपन्न परिवार की सुशिक्षित लड़की है। उसका विवाह परेश से हो जाता है। वह ससुराल में आकर अपने को नये घर के अनुसार ढाल नहीं पाती। वह पढ़ी-लिखी रहने के कारण सबको गँवार, नीच, हीन दृष्टि से देखती है। घर में छोटी बहू होने के कारण सब उसकी आलोचना करना व उसे आदेश देना अपना कर्त्तव्य समझते हैं। वह आजाद ख्याल की है। उसे दूसरों का हस्तक्षेप तथा दूसरों की आलोचना पसंद नहीं है। वह परेश से अलग गृहस्थी बसाने के लिए कहती है। दादा जी परिवार के सभी सदस्यों को बुलाकर कहते हैं कि कोई बेला का अनादर नहीं करेगा। परिवार के सभी लोग अब उसका आदर करने लगते हैं। वह आदर नहीं बल्कि सबके साथ मिल-जुलकर काम करना चाहती है। जब उसे पता चलता है कि यह बदलाव दादा जी के कहने से हुआ है तो वह भावावेश में दादा जी से कहती है- ‘आप पेड़ से किसी डाली का टूट कर अलग होना पसंद नहीं करते, पर क्या आप ये चाहेंगे कि पेड़ से लगी-लगी वह डाली सूख कर मुरझा जाय…..।’

प्रश्न 38.
i) भारवि अपने पिता से क्यों बदला लेना चाहता था?
अथवा
ii) सुशीला का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
i) भारवि के पिता श्रीधर भरी सभा में उसका अपमान करते हैं। वहाँ बैठे हुए सभी पंडित भारवि के स्वर में ही बोलकर उसका परिहास करते हैं। इस बात को भारवि अपने दिल से लगा लेता है और उसके मन में यह बात घर कर जाती है कि पिता ने सब के सामने उसका अपमान किया। उनके रहते वह अपनी जिन्दगी में आगे नहीं बढ़ सकता। इस वजह से पिता के प्रति उसका क्रोध अंतिम सीमा तक पहुँच जाता है और वह अपने पिता से बदला लेना चाहता था।

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अथवा

ii) सुशीला महापंडित श्रीधर की पत्नी तथा महाकवि भारवि की माता है। अपने विद्वान पुत्र पर पिता की तरह इसे भी गर्व है। वह अपने पुत्र भारवि के घर न लौटने के कारण दुःखी है। वह पुत्र शोक में सो नहीं पाती। वह मानती है कि यदि पुत्र के लिए माँ की ममता मूर्खता है तो ऐसी मूर्खता हमेशा बनी रहे। पति के समझाने पर भी पुत्र-मोह कम नहीं होता। पुत्र के व्यामोह में वह अपने पति से भी काफी वाद-विवाद करती है, परन्तु अपनी मर्यादा में रहकर, अपने पति-धर्म को निभाती है।

V. अ) वाक्य शुद्ध कीजिएः (4 × 1 = 4)

प्रश्न 39.
i) अध्यापक जी पढ़ा रहा है।
ii) पृथ्वराज को पूछो।
iii) कोयल डाली में बैठी है।
iv) कोई ने मेरी पुस्तक देखी?
उत्तरः
i) अध्यापक जी पढ़ा रहे हैं।
ii) पृथ्वराज से पूछो।
iii) कोयल डाली पर बैठी है।
iv) किसी ने मेरी पुस्तक देखी?

आ) कोष्टक में दिये गए उचित शब्दों से रिक्त स्थान भरिएः (4 × 1 = 4)
(विज्ञान, स्वभाव, समाज, समय)

प्रश्न 40.
i) अपर्णा के …………… में मधुरता है।
ii) आज का युग ……………. का युग है।
iii) ……………. परिवर्तनशील है।
iv) साहित्य ………….. का दर्पण है।
उत्तरः
i) स्वभाव
ii) विज्ञान
iii) समय
iv) समाज।

इ) निम्नलिखित वाक्यों को सूचनानुसार बदलिए: (3 × 1 = 3)

प्रश्न 41.
i) संदीप कुंभ मेले में जा रहा है। (भविष्यत्काल में बदलिए)
ii) वसुंधरा ने देश की सेवा की। (वर्तमानकाल में बदलिए)
iii) वह आग चिता पर रखेगा। (भूतकाल में बदलिए)
उत्तरः
i) संदीप कुंभ मेले में जाएगा।
ii) वसुंधरा देश की सेवा करती है।
iii) उसने आग चिता पर रखा।

ई) निम्नलिखित मुहावरों को अर्थ के साथ जोड़कर लिखिएः (4 × 1 = 4)

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प्रश्न 42.
i) दाल न गलना a) मेहनत से बचना
ii) दिन फिरना b) सफल न होना
iii) नींव डालना c) भाग्य पलटना
iv) जी चुराना d) आरम्भ करना
उत्तरः
i – b, ii – c, iii – d, iv – a.

उ) अन्य लिंग रूप लिखिए: (3 × 1 = 3)

प्रश्न 43.
i) गाय
ii) अभिनेता
iii) स्वामिनी।
उत्तरः
i) बैल
ii) अभिनेत्री
iii) स्वामी।

ऊ) अनेक शब्दों के लिए एक शब्द लिखिए: (3 × 1 = 3)

प्रश्न 44.
i) आँखों के सामने होनेवाला।
ii) नीचे लिखा हुआ।
iii) जो परिचित न हो।
उत्तरः
i) आँखों देखी / प्रत्यक्ष
ii) निम्नलिखित
iii) अपरिचित।

ए) निम्नलिखित शब्दों के साथ उपसर्ग जोड़कर नए शब्दों का निर्माण कीजिए : (2 × 1 = 2)

प्रश्न 45.
i) शिक्षित
ii) जीवन।
उत्तरः
i) शिक्षित = अ + शिक्षित = अशिक्षित।
ii) जीवन = आ + जीवन = आजीवन।

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ऐ) निम्नलिखित शब्दों में से प्रत्यय अलग कर लिखिएः (2 × 1 = 2)

प्रश्न 46.
i) पागलपन
ii) महत्वपूर्ण।
उत्तर:
i) पागलपन = पागल + पन।
ii) महत्वपूर्ण = महत्व + पूर्ण।

VI. अ) किसी एक विषय पर निबंध लिखिए : (1 × 5 = 5)

प्रश्न 47.
i) a) दूरदर्शन।
b) इंटरनेट की दुनिया।
c) बेरोजगारी की समस्या।
अथवा
ii) शैक्षणिक प्रवास जाने के लिए पिता से हजार रुपए माँगते हुए पत्र लिखिए।
उत्तर:
a) दूरदर्शन
आधुनिक युग विज्ञान का युग कहलाता है। इस युग में मानव की सुविधा के लिए विज्ञान ने अनेक चीजें दी है। मनोरंजन के नये-नये साधन दिये है। उनमें एक है दूरदर्शन। दूरदर्शन का स्थान आज बहुत ऊँचा और महत्त्वपूर्ण है।

आज शहरों से लेकर गाँव तक के लोग दूरदर्शन की प्राप्ति के लिए उत्सुक हैं। सरकार ने बहुत से शहरों में दूरदर्शन की सुविधा प्रदान की है। सभी गावों को भी दूरदर्शन की व्याप्ति में लाने का प्रयत्न हो रहा है।

जिस प्रकार रेडियों के द्वारा हम दूर की बातों को सुन सकते हैं उसी तरह दूरदर्शन से दूर की घटनाओं को हम घर बैठे देख सकते हैं। अमेरिका में जो कुछ हो रहा है उसको हम उसी समय अपने घर में बैठकर देख सकते हैं।

संसार के किसी भी कोने में हुईं घटनाओं को, चाहे वे सुखदायी हो या दुखदायी, यथावत् लोगों के सामने रखने का काम दूरदर्शन करता है। दूरदर्शन का उपयोग आजकल उच्च शिक्षा में भी किया जाता है। बड़े-बड़े वैज्ञानिक प्रयोग, शोध आदि का परिचय दूरदर्शन द्वारा सारे विश्व को कराया जाता है।

लोगों को शिक्षित करने में दूरदर्शन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भारत जैसे अर्धविकसित देश में छब्बीस प्रतिशत लोग अनपढ़ हैं। अनपढ़ों को पढ़ाई, स्वास्थ्य, नागरिक शिक्षा आदि विषयों के बारे में जानकारी देने में दूरदर्शन के द्वारा अत्यधिक सहायता प्राप्त होती है।

दूरदर्शन मनोरंजन का प्रमुख साधन है। यह हमें मनोरंजन प्रदान करता है। दूरदर्शन सस्ते दामों पर विज्ञान और मनोरंजन को प्रदान करने में सफल हुआ है। लोग घर बैठे-बैठे बिना कष्ट के अपना मनोविकास और मनोरंजन कर सकते हैं। इस प्रकार दूरदर्शन आजकल एक सफल लोकप्रिय प्रचार-माध्यम साबित हुआ है।

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दूरदर्शन से कुछ हानियाँ भी है। दूरदर्शन के प्रचार से सिनेमा उद्योग को कुछ धक्का लगा है। लोग अब घर में ही बैठ कर अपने पसंद की फिल्में देख सकते हैं। बड़े-बड़े राष्ट्रीय खेल, प्रतियोगिताएँ बिना पैसे दिये घर बैठ कर हम देख सकते हैं। इससे खेलों के मैदान में भीड़ कम हो गयी है। दूरदर्शन का उपयोग अधिक करने के कारण लोगों की दृष्टि भी कमजोर हो जाती है। दूरदर्शन में आज बच्चों की रुचि अधिक हो गयी है। इससे इसका असर उनकी पढ़ाई पर पड़ गया है। बच्चे अपनी पढ़ाई की ओर कम ध्यान दे रहे हैं। दूरदर्शन के सभी कार्यक्रम नियंत्रित होने के कारण इसमें हानियों की अपेक्षा लाभ अधिक है। दूरदर्शन में उत्तम कार्यक्रम का प्रसार करना चाहिए।

b) इंटरनेट की दुनिया
इंटरनेट दुनिया भर में फैले कम्प्यूटरों का एक विशाल संजाल है जिसमें ज्ञान एवं सूचनाएं भौगोलिक एवं राजनीतिक सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए अनवरत प्रवाहित होती रहती हैं।

कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सियोनार्ड क्लिनरॉक को इन्टरनेट का जन्मदाता माना जाता है। इन्टरनेट की स्थापना के पीछे उद्देश्य यह था कि परमाणु हमले की स्थिति में संचार के एक जीवंत नेटवर्क को बनाए रखा जाए। लेकिन जल्द ही रक्षा अनुसंधान प्रयोगशाला से हटकर इसका प्रयोग व्यावसायिक आधार पर होने लगा। फिर इन्टरनेट के व्यापक स्तर पर उपयोग की संभावनाओं का मार्ग प्रशस्त हुआ और अपना धन लगाना प्रारम्भ कर दिया।

1992 ई. के बाद इन्टरनेट पर ध्वनि एवं वीडियो का आदान-प्रदान संभव हो गया। अपनी कुछ दशकों की यात्रा में ही इन्टरनेट ने आज विकास की कल्पनातीत दूरी तय कर ली है। आज के इन्टरनेट के संजाल में छोटे-छोटे व्यक्तिगत कम्प्यूटरों से लेकर मेनफ्रेम और सुपर कम्प्यूटर तक परस्पर सूचनाओं का आदान-प्रदान कर रहे हैं। आज जिसके पास भी अपना व्यक्तिगत कम्प्यूटर है वह इंटरनेट से जुड़ने की आकांक्षा रखता है।

इन्टरनेट आधुनिक विश्व के सूचना विस्फोट की क्रांति का आधार है। इन्टरनेट के ताने-बाने में आज पूरी दुनिया है। दुनिया में जो कुछ भी घटित होता है और नया होता है वह हर शहर में तत्काल पहँच जाता है। इन्टरनेट आधुनिक सदी का ऐसा ताना-बना है, जो अपनी स्वच्छन्द गति से पूरी दुनिया को अपने आगोश में लेता जा रहा है। कोई सीमा इसे रोक नहीं सकती। यह एक ऐसा तंत्र है, जिस पर किसी एक संस्था या व्यक्ति या देश का अधिकार नहीं है बल्कि सेवा प्रदाताओं और उपभोक्ताओं की सामूहिक सम्पत्ति है।

इन्टरनेट सभी संचार माध्यमों का समन्वित एक नया रूप है। पत्र-पत्रिका, रेडियो और टेलीविजन ने सूचनाओं के आदान-प्रदान के रूप में जिस सूचना क्रांति का प्रवर्तन किया था, आज इन्टरनेट के विकास के कारण वह विस्फोट की स्थिति में है। इन्टरनेट के माध्यम से सूचनाओं का आदान-प्रदान एवं संवाद आज दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक पलक झपकते संभव हो चुका है।

इन्टरनेट पर आज पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं, रेडियों के चैनल उपलब्ध हैं और टेलीविजन के लगभग सभी चैनल भी मौजूद हैं। इन्टरनेट से हमें व्यक्ति, संस्था, उत्पादों, शोध आंकड़ों आदि के बारे में जानकारी मिल सकती है। इन्टरनेट के विश्वव्यापी जाल (www) पर सुगमता से अधिकतम सूचनाएं प्राप्त की जा सकती हैं। इसके अतिरिक्त यदि अपने पास ऐसी कोई सूचना है जिसे हम सम्पूर्ण दुनिया में प्रसारित करना चाहें तो उसका हम घर बैठे इन्टरनेट के माध्यम से वैश्विक स्तर पर विज्ञापन कर सकते हैं। हम अपने और अपनी संस्था तथा उसकी गतिविधियों, विशेषताओं आदि के बारे में इन्टरनेट पर अपना होमपेज बनाकर छोड़ सकते हैं। इन्टरनेट पर पाठ्य सामग्री, प्रतिवेदन, लेख, कम्प्यूटर कार्यक्रम और प्रदर्शन आदि सभी कुछ कर सकते हैं। दूरवर्ती शिक्षा की इन्टरनेट पर असीम संभावनाएं हैं।

इन्टरनेट की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भी अहम् भूमिका है। विभिन्न प्रकार के सर्वेक्षण एवं जनमत संग्रह इन्टरनेट के द्वारा भली-भांति हो सकते हैं। आज सरकार को जन-जन तक पहुंचने के लिए ई-गवर्नेस की चर्चा हो रही है। व्यापार के क्षेत्र में इन्टरनेट के कारण नई संभावनाओं के द्वार खुले हैं। आज दुनिया भर में अपने उत्पादों और सेवाओं का विज्ञापन एवं संचालन अत्यंत कम मूल्य पर इन्टरनेट द्वारा संभव हुआ है। आज इसी संदर्भ में वाणिज्य के एक नए आयाम ई-कॉमर्स की चर्चा चल रही है। इन्टरनेट सूचना, शिक्षा और मनोरंजन की त्रिवेणी है। यह एक अन्तःक्रिया का बेहतर और सर्वाधिक सस्ता माध्यम है। आज इन्टरनेट कल्पना से परे के संसार को धरती पर साकार करने में सक्षम हो रहा है। जो बातें हम पुराण और मिथकों में सुनते थे और उसे अविश्वसनीय और हास्यास्पद समझते थे वे सभी आज इन्टरनेट की दुनिया में सच होते दिख रहे हैं। टेली मेडिसीन एवं टेली ऑपरेशन आदि इन्टरनेट के द्वारा ही संभव हो सके हैं।

c) बेरोजगारी की समस्या
बेरोजगारी का अर्थ है- काम चाहने वाले व्यक्ति को कार्य क्षमता रहते हुए भी काम न मिलना। बेरोजगारी किसी भी राष्ट्र के लिए चिंता का विषय है। बेरोजगारी के कारण राष्ट्रों का सर्वांगीण विकास नहीं हो पा रहा है, जिससे वे त्रस्त हैं। भारत में यह समस्या कुछ ज्यादा ही गंभीर है। भारत के गांव-शहर तथा शिक्षित-अशिक्षित सभी इस समस्या से ग्रस्त हैं।

अब बेरोजगारी की समस्या के कारण और निवारण – दोनों पर दृष्टिपात करना आवश्यक है। जनसंख्या वृद्धि, कृषि पर अधिक भार, प्राकृतिक प्रकोप, मशीनीकरण एवं दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली – बेरोजगारी के मूल कारण हैं। भारत में उत्पादन एवं रोजगार वृद्धि पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। फलतः बेरोजगारों की संख्या बढ़ती जा रही है।

बेरोजगारी की समस्या दूर करने के लिए शिक्षा एवं परिवार नियोजन की सहायता से जनसंख्या वृद्धि की दर घटाना आवश्यक है। भारत की आबादी का 60 प्रतिशत भाग कृषि पर आधारित है। इधर जनसंख्या वृद्धि के कारण कृषि भूमि में दिनों-दिन कमी हो रही है। इसके कारण भी बेरोजगारों की संख्या में इजाफा हो रहा है। भारतीय किसानों को प्राकृतिक प्रकोपों का भी सामना करना पड़ता है – कभी अतिवृष्टि, तो कभी अनावृष्टि। इससे लोग बेकार हो जाते हैं। अतः इस समस्या के समाधान हेतु सहकारिता एवं वैज्ञानिक उपाय खेती के लिए अपनाने होंगे।

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वर्तमान युग तो मशीनों का युग है। इन मशीनों ने उद्योगों में लगे लाखों मजदूरों के काम छीनकर उन्हें बेकारों की पंक्ति में खड़ा कर दिया है। इसी कारणवश हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने मशीनीकरण का विरोध किया था। इससे छुटकारा पाने के लिए गाँवों तथा शहरों में कुटीर और लघु उद्योगों का जाल फैलाना होगा।

वर्तमान शिक्षा प्रणाली में आमूल परिवर्तन लाकर ही इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। इसके लिए व्यावहारिक शिक्षा प्रणाली अपनानी होगी, जिससे ज्ञानी मस्तिष्क के साथ साथ कुशल हाथ भी निकलें अर्थात शिक्षा को रोजगारोन्मुखी बनाया जाए। साथ ही साथ लोगों में नौकरी परस्ती की प्रवृत्ति के बजाय रोजगार परक प्रवृत्ति जागृत करनी होगी।

बेरोजगारी का दुष्प्रभाव प्रकारांतर से समाज पर पड़ता है, जिससे समाज अनेक समस्याओं से ग्रस्त हो जाता है। खासकर शिक्षित बेरोजगार युवकों का मस्तिष्क रचनात्मक न रहकर विध्वंसात्मक हो जाता है। समाज में आश्चर्य चकित करने वाले अपराध हो रहे हैं, जो बेरोजगारों के मस्तिष्क की उपज हैं। अशिक्षितों के बेरोजगार रहने से उतनी गंभीर समस्या नहीं उत्पन्न होती, जितनी गंभीर समस्या शिक्षित बेरोजगारों से उत्पन्न होती है।

अथवा

ii)

दि.: 12 अप्रेल 2018

पूज्य पिताजी,
सादर प्रणाम।
मैं यहाँ आपके आशीर्वाद से कुशल हूँ। आपका पत्र मिला, पढ़कर अत्यंत खुशी हुई। मेरी पढ़ाई ठीक चल रही है। आपकी आज्ञानुसार मन लगाकर दिन-रात पढ़ाई में व्यस्त रहता हूँ। खेलकूद या गपशप में ज्यादा समय गँवा नहीं रहा हूँ।
हमारे स्कूल की ओर से अगले महीने 10 से 13 तारीख तक शैक्षिक-यात्रा का आयोजन हुआ है। उसमें मेरे सारे मित्र जा रहे हैं। उनके साथ मैं भी जाना चाहता हूँ। इसलिए मनीआर्डर द्वारा मुझे तुरंत १५०० रुपये भेजने की कृपा करें। माताजी को मेरा प्रणाम, छोटी बहन प्रिया को ढेर सारा प्यार।

आपका आज्ञाकारी बेटा,
हर्ष

सेवा में,
श्री प्रभाकर बी.एम.
घर नं. 521, भरत निवास
कर्नाटक स्कूल के समीप
राजेश्वरी नगर, बीदर जिला।

आ) निम्नलिखित अनुच्छेद पढ़कर उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए: (5 × 1 = 5)

प्रश्न 48.
फिजूलखर्ची एक बुराई है, लेकिन ज्यादातर मौकों पर हम इसे भोग, अय्याशी से जोड़ लेते हैं। फिजूलखर्ची के पीछे बारीकी से नजर डालें तो अहंकार नजर आएगा। अहंकार को प्रदर्शन से तृप्ति मिलती है। अहं की पूर्ति के लिए कई बार बुराइयों से रिश्ता भी जोड़ना पड़ता है। अहंकारी लोग बाहर से भले ही गंभीरता का आवरण ओढ़ लें, लेकिन भीतर से वे उथलेपन और छिछोरेपन से भरे रहते हैं। जब कभी समुद्र तट पर जाने का मौका मिले खएगा लहरें आती हैं. जाती हैं और यदि चट्टानों से टकराती हैं तो पत्थर वहीं रहते हैं, लहरें उन्हें भिगोकर लौट जाती हैं। हमारे भीतर हमारे आवेगों की लहरें हमें ऐसे ही टक्कर देती हैं। इन आवेगों, आवेशों के प्रति अडिग रहने का अभ्यास करना होगा, क्योंकि अहंकार यदि लम्बे समय टिके रहे, तो वह नए-नए तरीके ढूँढ़ेगा। अहंकार के कारण ही जीवन का आनन्द खो जाता है। इसलिए प्रयास करें कि विनम्र और निरहंकारी बने रहें।
प्रश्नः
i) फिजूलखर्ची को किसके साथ जोड़ लेते हैं?
ii) अहं की पूर्ति के लिए क्या करना पड़ता है?
iii) अहंकारी लोग भीतर से कैसे रहते हैं?
iv) समुद्र तट पर जाने से क्या देखने को मिलेगा?
v) जीवन का आनंद क्यों खो जाता है?
उत्तरः
i) फिजूलखर्ची को अय्याशी के साथ जोड़ लेते हैं।
ii) अहं की पूर्ति के लिए कई बार बुराइयों से रिश्ता जोड़ना पड़ता है।
iii) अहंकारी लोग भीतर से उथलेपन और छिछोरेपन से भरे रहते हैं।
iv) समुद्र तट पर जाने से लहरें देखने को मिलेंगे।
v) जीवन का आनंद अहंकार के कारण से खो जाता है।

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इ) हिन्दी में अनुवाद कीजिए: (5 × 1 = 5)

प्रश्न 49.
2nd PUC Hindi Previous Year Question Paper June 2019 1

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