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Karnataka 2nd PUC Hindi Textbook Answers Sahitya Gaurav Chapter 4 एक कहानी यह भी

एक कहानी यह भी Questions and Answers, Notes, Summary

I. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए :

प्रश्न 1.
मन्नू भंडारी का जन्म किस गाँव में हुआ?
उत्तर:
मन्नू भंडारी का जन्म मध्य प्रदेश के भानपुरा गाँव में 1931 ई. में हुआ।

प्रश्न 2.
अजमेर से पहले मन्नू के पिता कहाँ थे?
उत्तर:
अजमेर से पहले मन्नू के पिता इंदौर में थे।

प्रश्न 3.
लेखिका की बड़ी बहन का नाम लिखिए।
उत्तर:
लेखिका की बड़ी बहन का नाम सुशीला था।

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प्रश्न 4.
पाँच भाई-बहनों में सबसे छोटी कौन है?
उत्तर:
पाँच भाई-बहनों में सबसे छोटी मन्नू भंडारी है।

प्रश्न 5.
महानगर के फ्लैट में रहनेवाले लोग क्या भूल गए हैं?
उत्तर:
महानगर के फ्लैट में रहनेवाले लोग परंपरागत ‘पड़ोस-कल्चर’ भूल गए थे।

प्रश्न 6.
पिता जी का आग्रह क्या था?
उत्तर:
पिता जी का आग्रह था कि मन्नू रसोई से दूर ही रहे।

प्रश्न 7.
पिता जी रसोई घर को क्या कहते थे?
उत्तर:
पिता जी रसोई घर को भटियारखाना कहते थे।

प्रश्न 8.
मन्नू भंडारी को प्रभावित करनेवाली हिन्दी प्राध्यापिका का नाम लिखिए।
उत्तर:
मन्नू भंडारी को प्रभावित करनेवाली हिन्दी प्राध्यापिका का नाम शीला अग्रवाल है।

प्रश्न 9.
कॉलेज से किसका पत्र आया?
उत्तर:
कॉलेज से प्रिंसिपल का पत्र आया।

प्रश्न 10.
पिता जी के अंतरंग मित्र का नाम लिखिए।
उत्तर:
पिता जी के अंतरंग मित्र डॉ. अंबालाल जी थे।

प्रश्न 11.
शताब्दी की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है?
उत्तर:
शताब्दि की सबसे बड़ी उपलब्धि 15 अगस्त 1947 है।

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प्रश्न 12.
‘एक कहानी यह भी’ की लेखिका कौन हैं?
उत्तर:
‘एक कहानी यह भी’ की लेखिका मन्नू भंडारी हैं।

अतिरिक्त प्रश्न :

प्रश्न 1.
अंग्रेजी-हिन्दी विषयवार शब्दकोश के अधूरे काम को किसने पूरा किया?
उत्तर:
अंग्रेजी-हिन्दी विषयवार शब्दकोश के अधूरे काम को मन्नू भंडारी के पिता ने पूरा किया।

प्रश्न 2.
मन्नू भंडारी ने ‘महाभोज’ उपन्यास में किस पड़ोसी के व्यक्तित्व को अभिव्यक्त किया?
उत्तर:
मन्नू भंडारी ने ‘महाभोज’ उपन्यास में ‘दा साहब’ के व्यक्तित्व को अभिव्यक्त किया।

II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए :

प्रश्न 1.
मन्नू भंडारी के बचपन के बारे में लिखिए।
उत्तर:
मन्नू जन्मी थी भानपुरा गाँव में लेकिन उसका बचपन गुज़रा अजमेर के ब्रह्मपुरी मोहल्ले के दो मंजिला मकान में। पिता बहुत ही पढ़े-लिखे, इज्जतदार आदमी थे। माँ पढ़ी-लिखी नहीं थी। पाँच भाई बहनों में वह सबसे छोटी थी, बहुत ही दुबली और मरियल सी, काली सी। उससे दो साल बड़ी बहन सुशीला की मन्नु के साथ हमेशा तुलना की जाती क्योंकि सुशीला गोरी थी और गोरापन उसके पिताजी की कमजोरी थी। तभी से मन्नु के मन में हीन भावना की ग्रंथी को जन्म लिया था। आगे चलकर उसने मान, सम्मान और प्रतिष्ठा सब कुछ पाई लेकिन जिन्दगी में कभी हीन भावना से नहीं उबरी। अन्याय को चुपचाप सहनेवाली, बिना पढ़ी-लिखी माँ कभी उसका आदर्श नहीं बन सकती।

प्रश्न 2.
पिता जी के प्रति लेखिका के क्या विचार थे?
उत्तर:
अजमेर से पहले मन्नु के पिता इंदौर में थे जहाँ पर उनका बहुत मान-सम्मान, प्रतिष्ठा थी। आर्थिक झटके के कारण वे इंदौर से अजमेर आए। काँग्रेस के साथ-साथ वे समाज सुधार कामों से भी जुड़े हुए थे। शिक्षा को वे केवल उपदेश नहीं देते थे बल्कि आठ-आठ दस-दस विद्यार्थीयों को अपने घर में रखकर पढ़ाया करते थे। वे बहुत दरियादिल थे। एक ओर वे बेहद कोमल और संवेदनशील व्यक्ति थे तो दूसरी ओर बेहद क्रोधी और अहंवादी। उन्होंने अपने बल-बूते पर अंग्रेजी हिन्दी विषयवार शब्दकोश तैयार किया। अपनों के विश्वासघात, आर्थिक विवशता, नवाबी आदतें, अधूरी महत्वाकांक्षा के कारण आखिरी दिन में वे बहुत शक्की बन गए थे। रसोई को वे भटियारखाना कहते थे और वे नहीं चाहते थे कि मन्नू रसोई में जाएँ। उनके घर में आए दिन विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के जमावड़े होते थे और जमकर बहसें होती थी।

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प्रश्न 3.
लेखिका बचपन में कौन-कौन से खेल खेलती थीं?
उत्तर:
पाँच भाई-बहनों में सबसे छोटी मन्नू अपने से दो साल बड़ी बहन सुशीला के साथ घर के बड़े आँगन में सतोलिया, लँगडी-टाँग, पकडम-पकडाई काली-टीलो खेलती तो कमरों में गुड्डे-गुड़ियों के ब्याह रचाती पास-पड़ोस के सहेलियों के साथ। भाइयों के साथ कभी गिल्ली-डंडा खेलती। पतंग उड़ाने काँच पीसकर माँजा सूतना आदि भी करती थी। पूरे मोहल्ले भर में यह खेल खेलती रहती थी।

प्रश्न 4.
‘पड़ोस-कल्चर’ के बारे में लेखिका क्या कहती हैं?
उत्तर:
अपने घर के अंदर और घर के बाहर खेले जानेवाले खेलों के बारे में मन्नू कहती है कि उस जमाने में घर की दीवारें घर तक ही समाप्त नहीं हो जाती थी बल्कि पूरे मोहल्ले तक फैली रहती थी। इसलिए मोहल्ले के किसी भी घर में जाने पर कोई पाबंदी नहीं थी, बल्कि कुछ घर तो परिवार का हिस्सा ही थे। आजकल ऐसे नहीं है ज़िंदगी खुद जीने के इस आधुनिक दबाव ने शहरों के फ्लैट में रहनेवालों को यह ‘पड़ोस कल्चर’ नहीं समझ में आता। घर के चार दिवारों में रहनेवाले लोगों ने इस पड़ोस कल्चर को कितना संकुचित, असहाय और असुरक्षित बना दिया है कि पड़ोस में रहके भी हमें उनके बारे में कुछ भी पता नहीं रहता, नाही उनको हमारे बारे में।

प्रश्न 5.
शीला अग्रवाल का लेखिका पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
दसवीं कक्षा तक मन्नू बिना लेखक के बारे में जाने कोई भी किताब पढ़ती। 45 में दसवी पास कर ‘सावित्री’ गर्ल्स हाय स्कूल में फस्ट इयर करने आई तो हिन्दी की प्राध्यापिका शीला अग्रवाल से परिचय हुआ। उनके कारण मन्नू ने साहित्य जगत में प्रवेश किया। किताबों का चुनाव करके पढ़ना, पढ़ी हुई किताबों पर बहस करना। उसने सिखाया। चुन-चुन कर किताबें पढ़ने को दी। मन्नू ने तब बहुत लेखकों की – प्रेमचन्द, अज्ञेय, यशपाल, जैनेंद्र आदि की किताबें पढ़ी। इस तरह शीला अग्रवाल ने साहित्य का दायरा ही नहीं बढ़ाया बल्कि घर की चारदीवारी के बीच बैठकर देश की स्थितियों को जानने और उसे भी उन स्थितियों के भागीदार बनना सिखाया।

प्रश्न 6.
पिता जी ने रसोई को ‘भटियारखाना’ क्यों कहा है?
उत्तर:
बहनों की शादी हुई और भाई पढ़ाई के लिए बाहर चले गए तब मन्नू की ओर पिताजी का ध्यान गया।. लड़कियों को स्कूल की शिक्षा के साथ-साथ अच्छी गृहिणी, अच्छा खाना पकाना सिखाया जाता था लेकिन पिताजी का आग्रह था कि मन्नू रसोई से दूर रहे। रसोई को वे भटियारखाना कहते थे और उनके हिसाब से वहाँ रहना अपनी क्षमता और प्रतिभा को भट्टी में झोंकना था।

प्रश्न 7.
एक दकियानूसी मित्र ने मन्नू भंडारी के पिता से क्या कहा?
उत्तर:
आज़ाद हिंद फ़ौज के मुकदमे के सिलसिले में जब जगह हड़ताल का आह्वान था। छात्रों का एक बहत बड़ा समूह भी चौराहे पर इकट्ठा होकर भाषणबाजी कर रहे थे तब पिताजी के एक निहायत. दकियानूसी मित्र ने उन्हें जाकर कहा कि – मन्नू की मत मारी गई है? लड़कियों को आज़ादी दी, इसका मतलब यह नहीं कि वह उल्टे-सीधे लड़कों के हड़ताल करवाती, हुडदंग मचाती फिरे? उनके जैसे घरों की लड़कियाँ को यह शोभा देता है क्या? कोई मान-मर्यादा, इज्जत-आबरू का खयाल भी है।

प्रश्न 8.
मन्नू भंडारी की माँ का परिचय दीजिए।
उत्तर:
मन्नू की माँ उनके पिता के ठीक विपरीत थी। वह पढ़ी-लिखी नहीं थी। धरती से ज्यादा धैर्य और सहनशक्ति उसमें थी। पिताजी की हर ज्यादती को वह सह लेती और बच्चों की हर जिद हर फरमाइश सहज भाव से स्वीकार करती। सबकी इच्छा और पिताजी की आज्ञा को पालन करने के लिए सदैव तैयार रहती। सारे बच्चों का लगाव माँ के साथ था। लेकिन चुपचाप असहाय मजबूरी में रहना, उनका त्याग वगैरा सब मन्नू के लिए कभी आदर्श नहीं रहा।

III. निम्नलिखित वाक्य किसने किससे कहे?

प्रश्न 1.
‘लौटकर बहुत कुछ गुबार निकल जाए तब बुलाना’|’
उत्तर:
इस वाक्य को लेखिका मन्नू भंडारी अपनी माँ से कहती है।

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प्रश्न 2.
‘हमारे-आपके घरों की लड़कियों को शोभा देता है यह सब?’
उत्तर:
यह वाक्य मन्नू भंडारी के पिता जी के एक दकियानूसी मित्र ने पिताजी से कहा।

प्रश्न 3.
‘बंद करो अब, इस मन्नू का घर से बाहर निकलना।’
उत्तर:
यह वाक्य मन्नू भंडारी के पिताजी ने अपनी पत्नी से कहा।

प्रश्न 4.
‘आइ एम रिअली प्राउड आफ यू।
उत्तर:
यह वाक्य डॉ. अंबालाल ने लेखिका मन्नू भंडारी के पिताजी से कहा।

प्रश्न 5.
‘यू हैव मिस्ड समथिंग।’
उत्तर:
यह वाक्य डॉ. अंबालाल ने मन्नू के पिताजी से कहा।

प्रश्न 6.
‘पर पिताजी! कितनी तरह के अंतर्विरोधों के बीच जीते थे वे|’
उत्तर:
मन्नू भंडारी ने अपने मन में इसे सोचा।

अतिरिक्त प्रश्न :

प्रश्न 1.
‘सारे कॉलिज की लड़कियों पर इतना रौब है तेरा…’
उत्तर:
मन्नू के पिता ने मन्नू से कहा।

IV. ससंदर्भ स्पष्टीकरण कीजिए :

प्रश्न 1.
‘एक ओर वे बेहद कोमल और संवेदनशील व्यक्ति थे तो दूसरी ओर बेहद क्रोधी और अहंवादी|’
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘एक कहानी यह भी’ नामक पाठ से लिया गया है जिसकी लेखिका मन्नू भण्डारी हैं।
संदर्भ : प्रस्तुत वाक्य में लेखिका स्वयं अपने पिता के स्वभाव का परिचय देते हुए इसे कहती हैं।
स्पष्टीकरण : मन्नू भण्डारी के पिताजी एक सुशिक्षित संवेदनशील व्यक्ति थे। जब वे इन्दौर में थे, तब उनकी बड़ी प्रतिष्ठा थी, सम्मान था, नाम था। राजनीति के साथ-साथ समाज-सुधार के कारण वे बेहद क्राधा गए। गिरती आमधारण, अपनों के हा कामों से भी जुड़े हुए थे। लेकिन एक बड़े आर्थिक झटके के कारण, अपनों के हाथों विश्वासघात किए जाने के कारण वे इंदौर से अजमेर आ गए। गिरती आर्थिक स्थिति, नवाबी आदतें, अधूरी महत्वाकाँक्षाएँ आदि के कारण वे बेहद क्रोधी और शक्की मिजाज के बन गए।

प्रश्न 2.
‘पिता के ठीक विपरीत थीं हमारी बेपढ़ी-लिखी माँ।
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘एक कहानी यह भी’ नामक पाठ से लिया गया है जिसकी लेखिका मन्नू भण्डारी हैं।
संदर्भ : लेखिका अपनी माँ का परिचय देते हुए यह वाक्य कहती हैं।
स्पष्टीकरण : मन्नू भण्डारी के पिताजी एक ओर बेहद कोमल और संवेदनशील शिक्षित व्यक्ति थे तो दूसरी ओर बेहद क्रोधी और अहंवादी थे। एक बहुत बड़े आर्थिक झटके के कारण, गिरती आर्थिक स्थिति, नवाबी आदतें, अधूरी महत्वाकांक्षाएँ आदि के कारण वे क्रोधी और शक्की मिजाज के हो गए थे। लेकिन मन्नू की माँ पिता के ठीक विपरीत थीं। धरती माँ जैसी सहनशील। पिताजी की हर ज्यादती को अपना प्राप्य और बच्चों की हर उचित-अनुचित फरमाइश और जिद को पूरा करना अपना फर्ज समझकर बड़े सहज भाव से स्वीकार करती थीं। उन्होंने जिन्दगी भर अपने लिए कुछ माँगा नहीं, चाहा नहीं, केवल दिया ही दिया।

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प्रश्न 3.
‘यह लड़की मुझे कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं रखेगी।’
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘एक कहानी यह भी’ नामक ‘ पाठ से लिया गया है जिसकी लेखिका मन्नू भण्डारी हैं।
संदर्भ : एक बार कॉलेज से प्रिंसिपल का पत्र आया कि पिता जी आकर मिलें। पत्र पढ़ते ही पिता जी आग-बबूला होकर यह वाक्य अपनी पत्नी से कहते हैं।
स्पष्टीकरण : यश-कामना पिताजी की सबसे बड़ी दुर्बलता थी। वे हमेशा सोचा करते कि कुछ ऐसे काम करने चाहिए कि समाज में उनका नाम हो, सम्मान हो, वर्चस्व हो। अपने वर्चस्व को धक्का लगनेवाली किसी भी बात को वे बर्दाश्त नहीं कर पाते। एक बार कालेज से प्रिंसिपल का पत्र आया कि आपकी बेटी के खिलाफ अनुशासनात्मक कारवाई क्यों न की जाए। पत्र पढ़ते ही मन्नू के पिताजी आग-बबूला होकर उपरोक्त वाक्य कहते हैं।

प्रश्न 4.
‘वे बोलते जा रहे थे और पिता जी के चेहरे का संतोष धीरे-धीरे गर्व में बदलता जा रहा था।’
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘एक कहानी यह भी’ नामक पाठ से लिया गया है जिसकी लेखिका मन्नू भण्डारी हैं।
संदर्भ : जब डॉ. अंबालाल जी पिता जी से मन्नू की तारीफ सुन रहे थे उस वक्त पिता जी के चेहरे का संतोष धीरे-धीरे गर्व में बदल रहा था।
स्पष्टीकरण : आजाद हिन्द फौज के मुकदमे का सिलसिला था। सभी कालेज, स्कूलों, दुकानों के लिए हड़ताल का आह्वान था। शाम को अजमेर के पूरे विद्यार्थी वर्ग को सम्बोधित करते हुए मन्नू भण्डारी ने एक बड़ा भाषण दिया। इस बीच उसके पिताजी के एक दकियानूसी मित्र ने घर आकर पिताजी से शिकायत की, व्यंग्य किया तो पिताजी आग बबूला हो गए। लेकिन पिताजी के एक बेहद अंतरंग मित्र डॉ. अंबालाल ने मन्नू की खूब प्रशंसा करते हुए बधाई दी। वे बोलते जा रहे थे और पिताजी का संतोष धीरे-धीरे गर्व में बदलता जा रहा था।

प्रश्न 5.
‘क्या पिता जी को इस बात का बिलकुल भी अहसास नहीं था कि इन दोनों का रास्ता ही टकराहट का है?’
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘एक कहानी यह भी’ नामक पाठ से लिया गया है जिसकी लेखिका मन्नू भण्डारी हैं।
संदर्भ : इस वाक्य में लेखिका अपने पिता जी एवं स्वयं की विचार भिन्नता के बारे में कहती है।
स्पष्टीकरण : प्रस्तुत वाक्य में लेखिका अपने पिता के एवं स्वयं की विचार भिन्नता के बारे में कहती हैं कि कितनी तरह के अन्तर्विरोधों के बीच जीते थे वे! एक ओर ‘विशिष्ट’ बनने और बनाने की प्रबल लालसा, तो दूसरी ओर अपनी सामाजिक छवि के प्रति सजगता। पर क्या यह संभव है? क्या पिता जी को इस बात का बिल्कुल भी अहसास नहीं था कि इन दोनों का तो रास्ता टकराहट का है?

V. निम्नलिखित वाक्यों को सूचनानुसार बदलिए :

प्रश्न 1.
एक बहुत बड़े आर्थिक झटके के कारण वे इंदौर से अजमेर आ गए थे। (वर्तमानकाल में बदलिए)
उत्तर:
एक बहुत बड़े आर्थिक झटके के कारण वे इंदौर से अजमेर आ गये हैं।

प्रश्न 2.
वे जिंदगी भर अपने लिए कुछ माँगते नहीं हैं। (भूतकाल में बदलिए)
उत्तर:
उन्होंने जिंदगी भर अपने लिए कुछ नहीं माँगा।

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प्रश्न 3.
उनका भाषण सुनते ही बधाई देता हूँ। (भविष्यत्काल में बदलिए)
उत्तर:
उनका भाषण सुनते ही बधाई दूंगा।

VI. विलोम शब्द लिखिए :

पाप, नैतिक, सही, सम्भव, सुरक्षित, सक्रिय, व्यवस्थित।

  1. पाप × पुण्य
  2. नैतिक × अनैतिक
  3. सही × गलत
  4. सम्भव × असम्भव
  5. सुरक्षित × असुरक्षित
  6. सक्रिय × निष्क्रिय
  7. व्यवस्थित × अव्यवस्थित

VII. निम्नलिखित शब्दों के साथ उपसर्ग जोड़कर नए शब्दों का निर्माण कीजिए :

प्रतिष्ठित, हद, यश, क्रिया।

  1. प्रतिष्ठित – अ + प्रतिष्ठित = अप्रतिष्ठित
  2. हद – बे + हद = बेहद
  3. यश – अप + यश = अपयश
  4. क्रिया – प्रति + क्रिया = प्रतिक्रिया (सु + क्रिया = सुक्रिया)

एक कहानी यह भी लेखिका परिचय :

मन्नू भंडारी का जन्म मध्यप्रदेश के भानपुरा गाँव में 1931 ई. में हुआ। आपकी इण्टर तक की शिक्षा अजमेर शहर में हुई। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 1952 ई. में हिन्दी में एम.ए. करने के बाद दिल्ली के मिरांडा हाउस कॉलेज में अध्यापन कार्य करती रहीं। वहाँ से अवकाश प्राप्ति के बाद सम्प्रति दिल्ली में ही रहकर स्वतंत्र लेखन कर रही हैं। आपका विवाह प्रख्यात हिन्दी साहित्यकार श्री राजेंद्र यादव से हुआ। आपकी रचनाओं में स्त्री-मन से जुड़ी अनुभूतियों की अभिव्यक्ति देखी जा सकती है। आपकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए अनेक पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं, जिनमें भारतीय भाषा परिषद्, कोलकता, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के पुरस्कारों के अलावा हिन्दी अकादमी का शिखर सम्मान भी शामिल है।

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आपकी रचनाएँ : कहानी संग्रह : ‘मैं हार गई’, ‘एक प्लेट सैलाब’, ‘यही सच है’, ‘त्रिशंकु’, ‘मेरी प्रिय कहानियाँ’, ‘तीन निगाहों की एक तस्वीर’ आदि।
उपन्यास : ‘आपका बंटी’, ‘महाभोज’, ‘एक इंच मुस्कान’, ‘स्वामी’ आदि।

एक कहानी यह भी Summary in Hindi

‘एक कहानी यह भी’ आत्मकथा में मन्नू भंडारी ने अपने जीवन की घटनाओं पर प्रकाश डाला है। घर का वातावरण, माता-पिता के स्वभाव, भाई-बहन और सहेलियों के साथ खेल-कूद, प्राध्यापिका शीला अग्रवाल का प्रभाव, स्वतंत्रता-आंदोलन में सक्रियता आदि का रोचक वर्णन किया गया है।

मन्नू भंडारी का जन्म मध्य प्रदेश के भानपुरा गाँव में सन् 1931 में हुआ था। वह काली, दुबली-पतली और मरियल भी थी। बड़ी बहन सुशीला गोरी थी। अतः पिता जी सदा उसी की प्रशंसा अधिक करते थे। लेखिका की सदा उपेक्षा होती। अतः वह पिता जी के स्वभाव से कभी-कभी अन्य-मनस्क हो जाती। हाँ, पिता जी के प्रति उसके हृदय में श्रद्धा थी। वह कहती पिता जी की प्रतिष्ठा थी, उनका सम्मान था और उनका नाम भी था। एक तरफ वे कोमल और संवेदनशील थे, तो दूसरी ओर क्रोधी तथा अहंवादी भी थे।

लेखिका बचपन में भाइयों के साथ गिल्ली-डंडा, पतंग उड़ाने, लँगड़ी-टाँग, गुड्डे-गुड़ियों के ब्याह आदि खेल खेला करती। लेखिका की प्रायः अधिकांश कहानियों में मोहल्ले के ही पात्र हैं।

लेखिका की अध्यापिका शीला अग्रवाल ने लेखिका को साहित्य में प्रवेश करवाया था। अनेक साहित्यकारों की रचनाएँ पढ़ने के लिए प्रेरित किया। उनके मार्गदर्शन से लेखिका ने बहुत कुछ सोचा।

पिता जी रसोई घर को भटियारखाना कहते थे। क्योंकि उनके हिसाब से वहाँ रहना अपनी क्षमता और प्रतिभा को भट्टी में झोंकना था। पिता के ठीक विपरीत थी लेखिका की माँ। धरती से भी अधिक धैर्य और सहनशील। पिता जी की हर ज्यादती को अपना फर्ज समझकर सहज भाव से स्वीकार करती थी। उन्होंने सदा दूसरों को दिया है, माँगा नहीं। सबका लगाव माँ के साथ था।

पिता जी के एक निहायत दकियानूसी मित्र ने घर आकर लेखिका के बारे में कई सारी शिकायतें कीं। खरी-खोटी सुनाई। पिता जी एक बार तो चिंतित हो गए; परन्तु उनके एक अन्य मित्र डॉ. अंबालाल जी के कहने पर पिता जी के चेहरे का संतोष धीरे-धीरे गर्व में बदलने लगा।

आजादी के आंदोलन में भी लेखिका ने भाग लिया और आखिर वह दिन आ ही गया। जीत की खुशी में उन्होंने कहा – शताब्दी की सबसे बड़ी उपलब्धि ….. 15 अगस्त, 1947.

एक कहानी यह भी Summary in Kannada

एक कहानी यह भी Summary in Kannada 1
एक कहानी यह भी Summary in Kannada 2
एक कहानी यह भी Summary in Kannada 3
एक कहानी यह भी Summary in Kannada 4
एक कहानी यह भी Summary in Kannada 5
एक कहानी यह भी Summary in Kannada 6

एक कहानी यह भी Summary in English

This is an autobiography of Mannu Bhandari, in which she sheds light on some of the incidents from her life. She gives interesting descriptions of the atmosphere in her home, the nature of her parents, the games she played with her siblings and friends, the nature of her principal Sheela Agarwal, and her involvement in the freedom struggle.

Mannu Bhandari was born in Bhanpura village of Madhya Pradesh in 1931. She was a dark, skinny and sickly child. Her elder sister, Susheela, was quite fair. Moreover, her father always praised her elder sister. Mannu had to face rude behaviour and was frequently insulted. Thus, her father’s behaviour often made her feel depressed. Yet, there was devotion in her heart towards her father. She always said that her father was dignified, well respected and had a good name in society. On the one hand, he was tender, affectionate and sensitive, but on the other hand, he was often angry and egoistic.

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In her childhood, the author often played Gilli-danda and langdi-tang, flew kites, and played with dolls with her brothers. In most of her stories, the characters are based on people from her locality.

The author’s principal at school, Sheela Agarwal, introduced her to literature. She inspired the author to read the works of many litterateurs. Under her tutelage, the author developed a literary bent of mind.

The author’s father called the kitchen bhatiyar-khana’.According to him, staying in the kitchen was akin to shoving one’s ability and talent into a furnace. The mother was the exact opposite of the father. She was braver and more forgiving than the earth itself. Every tyranny of her father was borne and accepted by the mother as if it was her duty. She always gave and never demanded. Everyone was very attached to the mother.

Once, a very orthodox friend of the author’s father visited their house and made several complaints about the author to her father. The father was quite worried; however, upon the advice of one of his friends, Dr.Ambalal, he put his worry to rest.

The author also took part in the struggle for India’s independence and at last, the day arrived. The author considers the 15th of August 1947 as the greatest boon of the century.

कठिन शब्दार्थ :

  • निहायत – बहुत अधिक;
  • ओहदा – पद; दरियादिली – उदारता;
  • भग्नावशेष – खंडहर;
  • विस्फारित – खुला हुआ;
  • हाशिया – किनारा;
  • शक्की – संदेह करनेवाला;
  • खामियाँ – कमियाँ;
  • आक्रांत – कष्टों से ग्रस्त;
  • मरियल – दुर्बल;
  • पर्त – परत;
  • तुक्का – बेकार उपाय;
  • माँजा – धागा;
  • बरपना – मुसीबत आना;
  • पाबंदी – प्रतिबंध;
  • शिद्दत – अधिकता;
  • विच्छित – अलग होना;
  • सुघड़ – सुंदर;
  • शगल – शौक, आदत;
  • अहमियत – महत्व;
  • बवंडर – तूफान;
  • दकियानूसी – पुराने ख्याल वाला।
  • ‘महाभोज’ – मन्नू भंडारी का चर्चित उपन्यास, दा साहब उसके प्रमुख पात्र हैं।

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मुहावरे :

  • लू उतारना – अहं उतारना;
  • आग उगलना – गुस्सा करना;
  • थू-थू करना – बेइज्जती करना;
  • आग बबूला होना – बहुत क्रोधित होना।

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