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Karnataka State Syllabus Class 8 Hindi रचना निबंध लेखन

पर्यावरण की रक्षा

जनसंख्या वृद्धि एवं बढ़ते हुए फैशन के कारण – मनुष्य ने जंगलों का या वृक्षों का उपयोग ज्यादा करने लगा है। उपकरणों एवं ईधन के रूप में इतना अधिक करना प्रारंभ कर दिया कि प्रकृति का भी अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा। इसलिए आज ‘पर्यावरण की रक्षा करना सबसे बड़ी समस्या बन गई है।’ वायु हमारे प्राणों का आधार है।

इसलिए वायु को शुद्ध रखना बहुत ज़रूरी है। वायु को शुद्ध रखने के लिए आम, नीम, बरगद, तुलसी, आंवला और पीपल का वृक्ष आदि लगना ज़रूरी है। जंगल को काटने से बचाना है। अगर हम किसी एक वृक्ष को काटना है तो उसकी जगह पर दूसरा वृक्ष लगाना चाहिए। वृक्षों की संख्या ज्यादा रहने से समय के अनुसार वर्षा भी अच्छी तरह से होती है।

जंगलों के संरक्षण एवं संवर्धन के द्वारा वायु प्रदूषण को रोका जा सकता है। जल मनुष्य की बुनियादी आवश्यकता है। इसलिए कुआँ, तालाब और नदी का जल सफाई के साथ सुरक्षित रखा जाए। रासायनिक क्रियाओं के द्वारा परिशोधन किया जाए तो जल प्रदूषण को रोका जा सकता है। सरकार ने इस दिशा में प्रयास प्रारंभ कर दिया है। प्रदूषण का निवारण तभी हो सकता है ‘जब जनता एवं सरकार का एक साथ प्रयास – इस दिशा में निरंतर होता रहे।

समय का सदुपयोग

समय सब से ज्यादा मूल्य है। क्योंकि धन आता जाता रहता है, लेकिन बीता हुआ समय वापस कभी नहीं आता है। समय गतिशील है। इसे कोई भी रोक नहीं पाता और बाँधा नहीं जा सकता। इसलिए समय के बारे में कबीरदास ने इस प्रकार कहा है – ‘कल का काम आज करना चाहिए और आज का काम अभी शुरू कर देना चाहिए।’

इसलिए समय का उपयोग, सही उपयोग, सदुपयोग करना बहुत आवश्यक है। समय का उपयोग हमारे काम और सोच-विचार पर निर्भर है। दिन में चौबीस घण्टे होते हैं। उनमें से नित्य कर्म का समय निकाल देने के बाद जो समय बचता है, उसे सही योजना बनाकर उपयोग में लाना ही समय का सदुपयोग है। समय पर उठना, समय पर सोना बहुत आवश्यक है। जो जल्दी उठते हैं, वे दिन भर के सभी काम समय पर ही पूरे कर सकते हैं।

प्रत्येक काम को समय के साथ करना। हमें भी समय के साथ-साथ निरंतर गतिशील रहना चाहिए। समय को अच्छी तरह से योजना बनाकर एक पल भी नष्ट किए बिना काम-काज करना है। वही आदमी समाज में आगे बढ़ सकता है। वह सुखी और स्वच्छंद से जीवन बीत सकता है। जो समय को महत्व नहीं देकर कामकाज ठीक तरह से नहीं करता है वह कभी भी समाज में आगे नहीं बढ़ सकता है। वह हर कदम-कदम पर ठोकर खाता-रहता है। इसलिए आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है कि हम समय का सही उपयोग करें।

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी

गाँधीजी इस युग के महानतम व्यक्ति है। उन्होंने भारत को ही नहीं, अपितु विश्व की सम्पूर्ण पीड़ित मानवता को सत्य और अहिंसा का अमोघ शस्त्र देकर विश्व को शान्ति का पाठ पढ़ाया। आज विश्व में ऐसा कौन सा मानव हैं, जिसने महात्मा गाँधी का नाम न सुना हो।

उनका पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गाँधी था। इनका जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को काठियावाड़ प्रदेश के पोरबन्दर नामक स्थान में एक उच्च परिवार में हुआ था। पिता करमचन्द पहले पोरबन्दर, पीछे राजकोट और फिर बीकानेर के दीवान रहे। आपकी माता पुतलीबाई बहुत साधु स्वभाव और पूजा-पाठ तथा व्रत-उपवास में विश्वास रखने वाली महिला थी। आपकी शिक्षा अधिकतर राजकोट में ही हुई। 17 वर्ष की आयु में आपको बैरिस्टरी की शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैण्ड भेजा गया। सन् 1888 में आप बैरिस्टरी पास करके भारतवर्ष लौट आये।

गाँधीजी के जीवन के बीस वर्ष दक्षिण अफ्रीका के आंदोलन में व्यतीत हुए। दक्षिण अफ्रीका में अपने कार्य में सफलता प्राप्त करके सन् 1914 में वे भारतवर्ष लौटे। भारत आने पर कुछ दिनों तक आप श्री गोपालकृष्ण गोखले के साथ रहे। 1920 के असहयोग आन्दोलन में आपकी अग्रणी भूमिका थी। आपने विदेशी वस्त्र आदि का बहिष्कार किया तथा खादीप्रचार, अछूतोद्धार, मादक द्रव्य-निषेध, हिन्दू-मुस्लिम एकता का चतुर्मुखी कार्यक्रम काँग्रेस के समक्ष रखा।

सन् 1930 में आपने नमक कानून का विरोध किया तथा भारतीयों के अधिकारों की रक्षा की। 1942 में उन्होंने जो ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ छेड़ा, उससे अंग्रेजों ने समझ लिया कि अब हमें भारत से जाना ही होगा। इनके ही प्रयत्नों से 15 अगस्त सन् 1947 को देश स्वतन्त्र हुआ। आपकी मृत्यु 30 जनवरी सन् 1948 को हुई। गाँधीजी नेता, विचारक और अध्यात्मिक पुरुष थे। भारत को एक महान् राष्ट्र बनाने वाले गाँधीजी ही थे। इसीलिए वे ‘राष्ट्रपिता’ अथवा ‘बापू’ कहलाए।

समाचार पत्र

समाचार पत्र सभ्य समाज का एक आवश्यक अंग है। उनके बिना मानव का जीवन अपूर्ण समझा जाता है। वे विश्वभर की जानकारी हमें घर बैठे देते हैं। आधुनिक युग में समाचार पत्र मानव के विचारों के आदान-प्रदान का अंग हैं। समाचार पत्र कई प्रकार के होते हैं। उनका वर्गीकरण समयानुसार और विषयानुसार किया जा सकता है। दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक और मासिक समयानुसार समाचार पत्र के भेद है। विषयानुसार निकलनेवाले समाचार पत्र भी होते है। जैसे व्यापार, धर्म, सिनेमा, व्यवसाय आदि। ‘हिन्दुस्तान’, ‘नवभारत टाइम्स्’, ‘दैनिक जागरण’ आदि दैनिक पत्र हैं। ‘गृहशोभा’, ‘मेरी सहेली’, ‘कल्याण’, ‘भारत संदेश’, ‘चंदामामा’ आदि मासिक पत्र हैं।

समाचार पत्रों का मुख्य कार्य नये-नये समाचारों का इकट्ठा करके जनता तक पहुँचाना होता हैं। और जनता के विचारों को सरकार तक पहुँचाना भी। सरकार के कार्यो की समालोचना करके उसे ठीक रास्ते पर लाने का काम भी ये करते हैं। देश विदेशों के समाचारों के अलावा मनोरंजन, चलचित्र, क्रीडा, व्यापार संबंधी समाचारों की जानकारी भी इनसे मिलती हैं।

समाचार पत्रों में विज्ञापन छपवाकर व्यापारी अपनी चीजों की बिक्री बढ़ाते हैं। इससे देश की औद्योगिक उन्नति में बड़ी सहायता मिलती हैं। देश की राजनैतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक समस्याओं का हल करने में समाचार पत्र मदद देते हैं।

समाचार पत्र विज्ञान के युग का एक शक्तिशाली साधन हैं। यह राष्ट्र की राष्ट्रीयता का आधार स्तंभ हैं। यह जनता और सरकार को सदा जागृत रखता है और गलत रास्ते पर चलने से रोकता हैं। जनतंत्र में समाचार पत्रों का और अधिक महत्व है क्योंकि इसके द्वारा जनता और शासकों का संबंध बना रहता हैं। समाचार पत्र मानव की स्वतंत्रता के प्रतीक है। जन जीवन की वाणी भी हैं। ताजा खबरों का दूत है। समाचार पत्र प्रजातंत्र के प्रहरी है।

स्वतंत्रता दिवस

स्वतंत्रता दिवस हमारा महान् राष्ट्रीय पर्व है। यह पर्व प्रति वर्ष पन्द्रह अगस्त को समस्त भारत में अति उत्साह और हर्ष के वातावरण में मनाया जाता है। यही वह पवित्र दिवस है, जब शताब्दियों की पराधीनता के बाद भारत स्वाधीन हुआ था। सन् 1947 की पन्द्रह अगस्त को ही हमें स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी। यह राष्ट्रीय पर्व प्रतिवर्ष प्रत्येक नगर में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। विद्यालयों में छात्र अपने इस ऐतिहासिक उत्सव को बड़े उल्लास और उत्साह के साथ आयोजित करते हैं।

वास्तव में यह भारत के गौरव और सौभाग्य का पर्व है, जो हमारे हृदयों में नवीन आशा, नवीन स्फूर्ति, उत्साह और देश भक्ति का संचार करता है। यह उत्सव हमें स्मरण कराता है कि स्वाधीनता को पाना जितना कठिन है, उसे सुरक्षित रखना उससे भी अधिक कठिन है। अतः सभी भारतवासियों को सब प्रकार के भेद-भाव भुलाकार राष्ट्र की उन्नति के लिए तत्पर रहना चाहिए।

पुस्तकालय
अथवा
ग्रंथालय का सदुपयोग

पुस्तकालय का स्थूल अर्थ है – “पुस्तकों का घर’ या वह स्थान जहाँ पुस्तकों का संग्रह होता है।
पुस्तकालय प्रायः
(क) निजी
(ख) विद्यालयी और
(ग) सार्वजनिक तीन प्रकार के होते हैं।

पुस्तक प्रेमी अपना निजी पुस्तकालय बनाते हैं। विद्यालयों के पुस्तकालयों का उपयोग वहीं के छात्र या शिक्षक कर सकते हैं। सार्वजनिक पुस्तकालय ही ऐसे पुस्तकालय हैं, जिनका लाभ जन-सामान्य प्राप्त कर सकता है। कुछ निश्चित शुल्क देकर कोई भी व्यक्ति इनके सदस्य बन सकता है और पुस्तकालय से पुस्तकें प्राप्त कर सकता है।

पुस्तकालय से अनेक लाभ हैं। पुस्तकालय ज्ञान का भंडार हैं। अच्छे पुस्तकालय से सभी प्रकार का, सभी विषयों का ज्ञान मिलता है। किसी भी विषय का ज्ञान पुस्तकालयों से प्राप्त कर सकते हैं। पुस्तकालय संसार के महान व्यक्तियों का, महात्माओं, विचारकों, कवियों, लेखकों का परिचय कराता है। पुस्तकालयों से समय का सदुपयोग होता हैं। अवकाश के समय को पुस्तकों के साथ बिताकर हम मन की चिंताओं को भूल सकते हैं। पुस्तकालय हमारे चरित्र निर्माण में भी सहायक होते हैं।

पुस्तकालय ज्ञान-विज्ञान की जानकारी को प्रदान करने में अवश्य महत्वपूर्ण भूमिका को निभाते हैं। हमें सत्संगति प्रदान करते हैं। हमें अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाते हैं। इसलिए हमें पुस्तकालयों का अवश्य अधिक-से-अधिक उपयोग करना चाहिए।

मेरा प्रिय खेल

मुझे हॉकी का खेल सभी खेलों से अच्छा लगता है। हॉकी रोचक एवं उपयोगी खेल है। हॉकी खेल में सबसे पहली आवश्यकता है – तीव्र वेग से दौड़ना यदि खिलाडी तेज नहीं दौड़ सकता, तो वह विपक्षी खिलाड़ी से पिछड जाएगा। दूसरी आवश्यकता है – हस्तलाघव या हाथ की चतुराई। तीसरी आवश्यकता है – परस्पर सहयोग।

अच्छे खिलाड़ी कभी आपस में लड़ते नहीं और न कभी जान-बूझकर एक-दूसरे को चोट पहुंचाने का यत्न करते हैं। सभी खिलाड़ी भले नहीं होते। कुछ खिलाड़ी हार से बचने के लिए विपक्षी खिलाड़ियों को चोट पहुँचाने की कोशिश करते हैं जो बुरी बात है। खेल को खेल ही रखना चाहिए।
हॉकी की इन सब विशेषताओं के कारण यह खेल मुझे सबसे अधिक प्रिय है।

मेरी पाठशाला

मेरे विद्यालय का नाम ज्ञान-ज्योति बाल विद्यालय है। यह मैसूर जिले के हुनसूर के समीप स्थित है। यह विद्यालय पूरे जिले में अपने अच्छे शिक्षा स्तर के लिए प्रसिद्ध है। विद्यालय के चारों ओर हरे-भरे वृक्ष और दूर-दूर तक लहलहाते खेत हैं। इसका वातावरण विद्यालय के अनुकूल ही शान्त और पवित्र है।

मेरा विद्यालय दो मंजिला है। इसमें बारह कमरे और एक हाल है। सभी कमरों में प्रकाश, वायु और पंखों की उचित व्यवस्था है। इसके एक कमरे में प्रधानाचार्य बैठते हैं। एक में विद्यालय का कार्यालय है। एक में पुस्तकालय तथा एक में विज्ञान की प्रयोगशाला है। एक कमरा अध्यापकों के बैठने के लिए हैं। शेष कमरों में कक्षाएँ लगती हैं।

मेरे विद्यालय में पच्चीस अध्यापक हैं। वे उच्च शिक्षा प्राप्त तथा अपने-अपने विषयों के विशेषज्ञ है। मेरे सभी शिक्षक अत्यन्त योग्य, परिश्रमी और लगन वाले हैं। मेरे प्रधानाचार्य भी बहुत ही योग्य, उदार और अनुशासन प्रिय हैं।

विद्यालय भवन के साथ खेल का मैदान भी है, जहाँ मेरे खेल शिक्षक शारीरिक शिक्षा के घंटे में हमें भाँति-भाँति के खेल और व्यायाम सिखाते हैं। मेरे विद्यालय का परिणाम भी अत्युत्तम रहता है। यहाँ के छात्र प्रथम या द्वितीय स्थान पर आते हैं। इस कारण इसमें प्रवेश पाने के लिए छात्रों की बड़ी इच्छा रहती है। हम अपने विद्यालय से प्रेम करते हैं और सदा इसकी उन्नति चाहते हैं। मेरा विद्यालय एक आदर्श विद्यालय हैं।

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